प्रेम कुमार धूमल खुद किया चुनाव न लड़ने का फैसला
जो माया शर्मा को टिकट दिला सकता क्या वह अपने लिए टिकट नहीं ले सकते थे ले सकते थे लेकिन उन्होंने इतिहास रचा है
हमीरपुर। सतीश शर्मा। अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय धूमल क्यों हटे मैदान से हिमाचल प्रदेश की राजनीति में धूमल ने भाजपा के लिए जो किया वह एक मिसाल है भाजपा पर एक धब्बा लगा था धब्बा था 5 साल सरकार ना चलाने का। दो बार प्रदेश की राजनीति में शांता कुमार को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला लेकिन वे चुनाव जीतने के बाद दोनों बार ही ढाई साल से ज्यादा सरकार नहीं चला पाए उनकी सरकार गिर गई। धूमल ने 1998 में विधानसभा का चुनाव पहली बार लड़ा जिले में 5 सीटें जीतकर रिकॉर्ड पेश किया। 1998 में गठबंधन की सरकार 5 साल चलाई उसके बाद एक बार उन्हें दोबारा 5 साल सरकार चलाने का मौका मिला। आज जो भाजपा में घटनाक्रम हुआ 1 दिन में नहीं हुआ। जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल की राजनीति से साइड लाइन होकर दिल्ली चले गए थे। सब खुश थे कि 1 काटे को निकाल दिया। लेकिन जगत प्रकाश नड्डा के अनुभव तथा उनके परिवार तथा दोस्तों के मार्गदर्शन ने उन्हें विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। राजनीति के धुरंधर प्रेम कुमार धूमल धोखा खा गए अपनों से धोखा। 2017 का चुनाव में हारे नहीं थे हरवाया गया था हरवाने वाले कौन थे। राजा वीरभद्र सिंह का चक्रव्यूह। उन्होंने सुजानपुर में ऐसे व्यक्ति को आगे किया जो महत्वकांक्षी था धूमल का लाडला था राजेंद्र राणा। उसका प्रयोग कर राजा वीरभद्र सिंह ने ताना-बाना बुना। राणा की महत्वाकांक्षा को समझा राणा को पूरा आशीर्वाद दिया जो मांगा मिला। अति उत्साह जीवन में भारी पड़ जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल जो रिटायर हुए हैं हर व्यक्ति रिटायर होता है। लेकिन रिटायरमेंट से पहले उनके बेटे केंद्र में दो केंद्रीय मंत्रालयों का कार्य देख रहे हैं। भारत में सूचना प्रसारण मंत्रालय जिन लोगों के पास रहा है उनका अपना रुतबा रहा है भविष्य अनुराग का भी है। बेटा राजनीति में देश विदेश में स्थापित है। उम्र के इस पड़ाव पर है उन्हें अभी बड़ी कुर्सी मिलनी है। भारत का भविष्य अनुराग। उनके दूसरे बेटे अरुण धूमल आईपीएल के चेयरमैन बना दिए गए। सब एक दिन में नहीं हुआ धीरे धीरे। व्यक्तिगत तौर पर अरुण धूमल तथा अनुराग ठाकुर को बुलंदियों पर जाते हुए हमने अपनी आंखों के सामने देखा है। अपने लोगों के लिए धूमल परिवार हर कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है। बलदेव शर्मा के उदाहरण से आप समझ सकते हैं। 1998 से लेकर आज तक बलदेव शर्मा को जिंदगी में जो धूमल परिवार ने दिया वह एक मिसाल है। बलदेव की धूमल के प्रति वफादारी बलदेव के लिए रामबाण बनी। जो व्यक्ति धूमल का लाडला बना एक दिन में नहीं। आज माया शर्मा जो बलदेव शर्मा की धर्मपत्नी है उन्हें टिकट मिला है तो उनके पीछे प्रेम कुमार धूमल केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का हाथ रहा है। इस उदाहरण से आप समझ सकते हैं हिमाचल प्रदेश में धूमल परिवार अपनों के लिए क्या कुर्बानी दे सकता है। बडसर विधानसभा क्षेत्र ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जिसमें हर घर में ग्रेजुएट पोस्ट ग्रेजुएट महिला मिलेगी। माया के मुकाबले में बहुत पढ़ी-लिखी महिलाएं भाजपा में है लेकिन बलदेव जैसी वफादारी लेकर धूमल के प्रति प्यार बलदेव मिसाल है। बलदेव शर्मा को भी विधायक बनने से पहले से जानता हूं धूमल जी को भी विधानसभा का चुनाव पहली बार लड़ने से पहले से। धूमल अगर चुनाव लड़ना चाहते उन्हें हाईकमान भी रोक नहीं पाता। लेकिन राजनीति सेवा का साधन है बहुत सेवा की धूमल ने हिमाचल की राजनीति में जिन इलाकों में सड़कें नहीं थी उनमें सड़कों का जाल बिछाया। प्रेम कुमार धूमल ने जो कुर्बानी दी है उसका ईनाम आने वाले समय में धूमल के परिवार को ब्याज सहित वापस मिलेगा। भाजपा के 75 साल के सिद्धांत का उन्होंने जीवन में प्रयोग किया सफल प्रयोग सुजानपुर की हार का ठप्पा साथ लेकर रिटायरमेंट ली है लेकिन एक बेटा केंद्र में 2 विभागों का केंद्रीय मंत्री है दूसरा आईपीएल का अध्यक्ष। सुनने में छोटा लग सकता है लेकिन हकीकत में बहुत बड़ा है पिता हमेशा अपने बच्चों के लिए कुर्बानी देता है धूमल ने जो कुर्बानी दी भाजपा में मिसाल पेश की है इसका लाभ पीढ़ियों तक धूमल परिवार को मिलेगा मिसाल बने हैं प्रेम कुमार धूमल। प्रेम कुमार धूमल से बिना बातचीत किए यह लेख लिखा है एक बार उनसे बात करने का भी मन है इसमें अगर कोई गुंजाइश होगी तो निकट भविष्य में एक अन्य लेख लिखूंगा। धूमल चुनाव से हटकर भी बाजी जीते हैं उन्हें बधाई।

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