लंका दहन के साथ अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा हुआ संपन्न, देवी- देवता हुए विदा।
कुल्लू। सतीश शर्मा विट्टू।
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में लंका दहन कर प्राचीन परंपरा के साथ संपन्न हुआ। सात दिवसीय दशहरा पर्व में भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में सैंकड़ों देवी-देवताओं के साथ हजाराें की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। लंका दहन के लिए ऐतिहासिक ढालुपर के अस्थायी शिविर से भगवान रघुनाथ लाव-लश्कर के साथ रथ में सवार हुए। विधिवत पूजा-अर्चना के साथ लंका दहन के लिए माता हिडिम्बा की अगुवाई में बड़ी संख्या में श्रद्वालुओं ने भाग लिया और लंका दहन के लिए रथयात्रा मैदान के अंतिम छोर पर लंकाबेकर पहुंची, जिसके बाद माता हिडिम्बा व राज परिवार के सदस्यों ने ब्यास तट पर लंका दहन की परंपरा का निर्वहन किया। लंका दहन की रस्म को निभाने के बाद माता सीता को पालकी में रथ के पास लाया गया, इसके बाद कैटल मैदान से हजारों लोगों ने रथ को मोड़ा और वापस रथ मैदान तक पहुंचाया। रथ मैदान में सभी देवी-देवताओं को रघुनाथ जी ने विदा किया और फिर पालकी में सवार होकर सिया व लखन के साथ रघुनाथपुर स्थित अपने देवालय लौट गए। भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि 7 दिवसीय दशहरा उत्सव में सभी परंपराओं को निभाया गया। उन्होंने कहा कि रावण विद्वान था इसलिए देवभूमि कुल्लू में रावण का अपमान नहीं होता। लंका दहन में रावण के मुखौटे को भगवान राम के तीरों से भेदा जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव के अंतिम दिन जलेब राजा की चानणी से शुरू होकर कलाकेंद्र के समीप तक निकाली गई, जहां खड़की जाच का आयोजन किया गया। इस वर्ष खड़की जाच में सैंज घाटी के बनोगी क्षेत्र के देवता पुंडरिक, रैला के देवता लक्ष्मी नारायण, महाराजा कोठी के कमांद क्षेत्र के देवता कैला वीर, आशणी के देवता वीर कैला, देवता गौहरी, जौंगा के देवता बाबा वीरनाथ ने भाग लिया। खड़की जाच में शुरूआती दौर से बनोगी क्षेत्र से देवता पुंडरिक ऋषि दशहरा पर्व में शामिल होते हैं। भगवान रघुनाथ जी की उपस्थित में देवता पुंडरिक ऋषि दाईं ओर प्रस्थान करते हैं। इसी प्रकार इस वर्ष भी दशहरा उत्सव के अंतिम दिन लंका दहन से पूर्व भगवान नरसिंह की घोड़ी और पालकी में सवार होकर भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार राजा महेश्वर की जलेब शुरू हुई। कलाकेंद्र के समीप देवता पुंडरिक ऋषि सहित अन्य देवी-देवताओं ने देव परम्परा का निर्वहन किया। इसके बाद देवता एक-दूसरे से विदा लेकर अपने-अपने देवालय की ओर लौटे।