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देहदान कलियुग में भी संभव है देहदान का मेरा निर्णय
अंगदान भी कई लोगों के जीवन में नई सवेरा लेकर आता है
बडसर/हमीरपुर। सतीश शर्मा विट्टू।
जीवन जीना सिर्फ अपने लिए तो जानवर भी जी लेते। जीते जी समाज के काम आएं लेकिन मरने के बाद भी इस संसार में रहना बहुत कम लोगों को नसीब होता मैंने अपनी देहदान करने का प्रण लिया है। मरने के बाद मेरा शरीर काम आ सके। उसे जलाया न जाए। मरने के बाद जलाना,दफनाना अथवा समाधि बनाना इससे भी यूनिक है देह का दान करना। मैं इस कार्य को अपनी मर्जी से सहमति दे रहा हूं। शरीर नश्वर है मृत्यु के बाद हिंदू धर्म में शरीर जला दिया जाता है लेकिन मेरी इच्छा है की मैं अपना देहदान कर कर मरने के बाद भी समाज के ही काम आ सकूं। पंजाब के होशियारपुर में मेरी मुलाकात सेवानिवृत्त लोगों से हुई जो 3800 लोगों की जिंदगी में रोशनी कर चुके हैं उन्होंने अंधों के जीवन में आंखें दान करवा कर रोशनी प्रदान करवाई है। इस संस्था के लोगों से मिलने का सौभाग्य मुझे पंजाब के होशियारपुर में भारतीय जनता पार्टी के अविनाश राय खन्ना के घर पर मिला जब मैं टॉप न्यूज़ की कवरेज के लिए पंजाब होशियारपुर में अपने मित्र के साथ गया था। वहां हमारी मुलाकात अविनाश राय खन्ना ने उन लोगों से करवाई। मेरे गांव के ही बाबूराम ने भी देहदान का कार्य बखूबी किया है इस दुनिया में तो आज वह नहीं है लेकिन उनकी प्रेरणा मेरे लिए भी सार्थक है। पत्रकारिता में भी दिन रात समाज सेवा का कार्य चलता है मरने के बाद भी यह शरीर देहदान का मेरा निर्णय उन अलौकिक शक्तियों का परिणाम है जो इस प्रमाण को संचालित करती है।
अंगदान देहदान पुण्य महान।
इस अभियान से जुड़े अंगदान करें।
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