जब फीस पूरी ली जा रही तो काॅलेजों में स्टाफ क्यों है अधूरा-कैप्टन संजय
-जसवां-परागपुर के कॉलेजों में रिक्त पदों के मुद्दे पर गंभीरता से मंथन करे शिक्षा विभाग
डाडासीबा-सतीश शर्मा।
कैप्टन संजय पराशर ने जसवां-परागपुर के कॉलेजों में चल रहे रिक्त पदों का मुद्दा उठाते हुए शिक्षा विभाग को इस विषय पर गंभीरता से मंथन करने काे कहा है आैर तुरंत प्रभाव से सभी पदों पर स्टाफ नियुक्त करने की मांग की है। पराशर का कहना है कि स्वर्णिम भविष्य बनाने के लिए जसवां-परागपुर के दो महाविद्यालयों डाडासीबा और कोटला बेहड़ में सैंकड़ों विद्यार्थियों ने दाखिला लिया था, लेकिन प्रवक्ताओं व अन्य पद रिक्त रहने से बच्चों की शिक्षा पर विपरित असर पड़ रहा है। इससे विद्यार्थी ही नहीं, इन कॉलेजों में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने का निर्णय लेने वाले उनके अभिभावक भी खासे परेशान हैं। इस संबंध में पराशर ने विभाग के उच्च शिक्षा निदेशक को पत्र भी लिखा है।
दरअसल संजय पराशर ने सूचना के अधिकार के तहत जसवां-परागपुर क्षेत्र के कॉलेजों के स्टाफ के बारे में जानकारी मांगी थी। इसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों के दौरों के दौरान विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों ने भी कॉलेज में प्राध्यापक न होने से पढ़ाई बाधित होने के बारे में अवगत करवाया। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी को सांझा करने हुए पराशर ने बताया कि बाबा कांशीराम राजकीय महाविद्यालय, डाडासीबा में प्रधानाचार्य समेत राजनीति शास्त्र व इतिहास जैसे महत्वपूर्ण विषयों के प्रवक्ताओं के पद रिक्त चल रहे हैं। संगीत विषय तो शिक्षा विभाग ने स्वीकृत कर दिया, लेकिन स्टाफ की नियुक्ति करना विभाग भूल गया। महाविद्यालय में पुस्तकालय भी है और हाल ही में डेढ़ लाख रूपए की पुस्तकों के लिए बजट भी स्वीकृत हुआ है, लेकिन लाइब्रेरियन का पद खाली चल रहा है। इसके अलावा लिपिक वर्ग के स्टाफ की कमी इस काॅलेज में है। इससे महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले 332 छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। हालांकि कॉलेज के भवन पर करोड़ों रूपए की राशि खर्च की गई है, लेकिन स्टाफ न होने के कारण विद्यार्थी दाखिला यहां दाखिला लेने के बाद एक तरह से पछता रहे हैं। संजय ने कहा कि कुछ ऐसा ही हाल कोटला बेहड़ कॉलेज का भी है, जहां भी प्रमुख विषयों के प्रवक्ता नहीं है। इस कॉलेज में भी 120 विद्यार्थी अध्ययनरत है। संजय ने शिक्षा विभाग से सवाल उठाया है कि अगर विद्यार्थियों से पूरी फीस वसूली जा रही है तो फिर स्टाफ क्यों अधूरा है। कहा कि सुदूर गांवों में शिक्षण संस्थान खोलने के पीछे शासन की यही मंशा होती है कि विद्यार्थियों को घर-द्वार पर पढ़ाई का वातावरण मिल सके और विशेष रूप से वे छात्राएं भी नजदीक के ही कॉलेज में उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकें, जिनके अभिभावक दूरदराज के क्षेत्रों में उन्हें नहीं भेज पाते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि इन कॉलेजों में स्टाफ की कमी से विद्यार्थी खुद को साबित नहीं कर पाएंगे और भविष्य में विषयों पर उनकी पकड़ ढीली रह जाएगी। शिक्षा निदेशक को लिखे पत्र में पराशर ने इन काॅलेजों में स्टाफ के बारे में संज्ञान लेने का आग्रह किया है और जल्द ही सभी पदों को भरने की मांग की है। वहीं, डाडासीबा कॉलेज में अध्ययनरत विद्यार्थियों निशा, तमन्ना ठाकुर, गौरव, सिया, रिया मेहरा, नेहा, शिखा, कोमल, अक्षय कुमार अभिषेक, कर्ण, साहिल और अरुण कुमार का कहना है कि महाविद्यालय में स्टाफ की कमी चल रही है। कहा कि उच्च शिक्षा हासिल करके किसी मुकाम पर पहुंचने का इरादा रखते हैं, लेकिन स्टाफ की कमी के कारण उन उम्मीदों पर पानी फिर रहा है। उधर, बाबा कांशीराम महाविद्यालय डाडासीबा की कार्यकारी प्राचार्य और कोटला बेहड़ की प्राचार्य राजिंद्रा भारद्वाज ने कहा कि दोनों कॉलेजों में स्टाफ की कमी चल रही है। उच्च शिक्षा निदेशालय को महाविद्यालय में स्टाफ की नियुक्ति करने के लिए दो बार पत्र लिखे जा चुके हैं।

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